इलेक्टोरल बॉन्ड एक वित्तीय उपाय है जिसके माध्यम से लोग राजनीतिक दलों को चंदा दे सकते हैं। यह एक विशेष प्रकार का वित्तीय साधन होता है जो भारतीय सरकार द्वारा जारी किया जाता है। इसका उपयोग केवल राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए होता है और यह चंदा देने वाले व्यक्ति की पहचान को गोपनीय रखता है।
इसे खरीदने का प्रक्रिया सरल होता है, लेकिन इसके
इसे खरीदने का प्रक्रिया सरल होता है, लेकिन इसके प्रयोग में कई विवाद उठे हैं। इस पर रोक लगाई गई है क्योंकि इसे लेकर बहुत से संदेह उठे हैं। एक मुख्य संदेह यह है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से दिए गए चंदे की पर्याप्तता और पारदर्शिता पर संक्षेप में संदिग्धता है। इसके अलावा, यह एक तरह की चंदा प्रक्रिया है जिसमें नाम और पता छुपाए जा सकते हैं, जो खुले और साफ चंदा प्रणाली के सिद्धांत के खिलाफ है।
साथ ही, इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग राजनीतिक दलों के लिए चंदा प्राप्त करने के लिए एक समर्थन और व्यापारिक प्रक्रिया भी है। लोग इसे वित्तीय गोपनीयता का माध्यम मानते हैं, जिससे उन्हें अपने चंदे देने में अधिक आत्मविश्वास होता है।
इस पर रोक लगाने से पहले, इलेक्टोरल बॉन्ड की प्रणाली के संदर्भ में बेहतर समझने और सुधार के लिए अधिक संवेदनशीलता आवश्यक है। राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया को सुधारने के लिए समय-समय पर आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए ताकि लोगों को यकीन हो सके कि उनके चंदे का उपयोग निष्पक्ष और ट्रांसपैरेंट तरीके से हो रहा है।
इलेक्टोरल बॉन्ड का उद्दीपन 2017 में हुआ था
इलेक्टोरल बॉन्ड का उद्दीपन 2017 में हुआ था, जब भारत सरकार ने इसकी योजना की घोषणा की। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी, 2018 को कानूनी मान्यता प्रदान कर दी थी। इलेक्टोरल बॉन्ड एक वित्तीय योजना है जो राजनीतिक दलों को चंदा प्राप्त करने के लिए बनाई गई है। यह एक प्रकार का शपथ पत्र है, जिसे भारतीय स्टेट बैंक से खरीदा जा सकता है। इस पत्र के माध्यम से चंदा देने वाले व्यक्ति अपनी पसंदीदा पार्टी को गुमनाम तरीके से चंदा दे सकते हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स का समय केवल 15 दिनों का होता है, जिसका मतलब है कि इन बॉन्ड्स को उन्हीं दिनों के दौरान खरीदा जा सकता है। इसके अलावा, केवल उन राजनीतिक दलों को ही Electoral Bond के माध्यम से चंदा दिया जा सकता है जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिए वोटों का कम से कम 1 % हासिल किया है
निम्नलिखित टेबल में दिए गए हैं विभिन्न राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे की सूची:
पार्टी | चंदा (करोड़ रुपये) |
---|---|
बीजेपी | 6,986.5 (2019-20 में सबसे ज्यादा 2,555) |
कांग्रेस | 1,334.35 |
टीएमसी | 1,397 |
डीएमके | 656.5 |
बीजेडी | 944.5 |
वाईएसआर कांग्रेस | 442.8 |
तेदेपा | 181.35 |
सपा | 14.05 |
अकाली दल | 7.26 |
AIADMK | 6.05 |
नेशनल कॉन्फ्रेंस | 0.50 |
बीआरएस | 1,322 |
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरhttps://akhbarexpress.com/ल बॉन्ड पर लगाई गई रोक को बहुत गंभीरता से लिया है। उन्होंने कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन करती है, और इस वजह से इसे रोक लगा दिया गया है। अदालत ने निर्देश जारी करते हुए कहा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) को 31 मार्च, 2024 तक चुनाव आयोग को इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से अब तक किए गए सभी योगदानों के विवरण प्रदान करने के निर्देश दिए। इसके साथ ही, कोर्ट ने चुनाव आयोग को 13 अप्रैल, 2024 तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर इस जानकारी को साझा करने के लिए भी निर्देश दिया है।
Electoral Bond क्या होता है?
Electoral Bond एक वित्तीय उपाय है जो राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए उपलब्ध किया जाता है। यह एक प्रकार का शपथ पत्र है जो SBI द्वारा जारी किया जाता है। Electoral Bond के माध्यम से लोग अपनी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को गुमनाम तरीके से चंदा दे सकते हैं। यह बॉन्ड नकद पेमेंट के लिए उपयोग किया जा सकता है और केवल 15 दिनों के लिए वैध रहता है।
कैसे काम करते हैं Electoral Bond?
Electoral Bond का उपयोग करना सरल होता है। ये बॉन्ड विभिन्न मूल्यों में उपलब्ध होते हैं, जैसे 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये की रेंज में। ये SBI बैंक से खरीदे जा सकते हैं और इन्हें केवल KYC- COMPLIANT अकाउंट वाले लोग खरीद सकते हैं। बाद में इन बॉन्ड को किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट किया जा सकता है। इन बॉन्ड का यूज करते समय ध्यान रखना चाहिए कि ये केवल 15 दिनों के लिए ही वैध होते हैं।